स्व. श्री प्रदीपजी कुलकर्णी की आई "मम्मी" का कल देवलोकगमन हो गया।
अंत्येष्टि आज 10 बजे तिलक नगर मुक्तिधाम में होगी।
सदैव प्रसन्न रहना, छोटी छोटी बातों में गुस्सा होना, और छोटी छोटी बातों में मान जाना, ठहाका लगाकर हंसना, बड़ा सहज भाव रहा उनका।
संघ पर प्रथम प्रतिबंध काल में पति श्री वामनरावजी कारावास में थे, तभी प्रदीपजी का जन्म हुआ, पहली बार प्रदीपजी ने अपने पिता के दर्शन जेल की सलाखों के बीच किये थे, वहीं दूसरा प्रतिबंध सुदूर दक्षिण में कन्याकुमारी में बीता, किंतु इन वेदनाओं की कहानिएं भी बड़ी ओजस्विता से एवं शौर्य गाथा के रूप में हमने मम्मी से सुनी। साधनों की कमी, व्यवहार में कभी नही दिखी।
संघ के प्रचारकों और कार्यकर्ताओं का दूसरा घर, प्रदीपजी कुलकर्णी जैसे कार्यकर्ता इन्ही माँओं समर्पण एवं प्रताप के कारण ही तैयार होते हैं।
हमेशा किस्से कहानियों से भरी हुई रहती थी मम्मी, गुरुजी, भैयाजी दाणी, एकनाथजी रानाडे, दीनदयालजी, भाऊरावजी देवरस, भाऊरावजी बिस्कुठे, सुदर्शनजी, शरदजी मेहरोत्रा, बाबासाहब नातू, सुरेशजी सोनी, दत्ताजी उननगांवकर सबको उनके मनपसंद भोजन / पकवान बनाकर प्रेमपूर्वक खिलाने का आनंद और हर भोज से जुड़ा एक रोचक किस्सा। संघ कार्य के बढ़ने में ऐसी कई अनकही अनसुनी गृहणियों / महिलाओं के योगदान की एक और कड़ी आज छूट गयी।
बिरले ही होते है ऐसे लोग, अमिट छाप मन में सदैव के लिए छोड़ जाते हैं।
ईश्वर दिवांगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें, यही विनंती एवं श्रद्धांजलि।



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